विटामिन डी की कमी भारत में तेजी से एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बनती जा रही है। ICRIER की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, देश का हर पांचवां नागरिक इस कमी से जूझ रहा है। खासतौर पर पूर्वी भारत में स्थिति और भी चिंताजनक है, जहां करीब 39% आबादी इसकी चपेट में है।

(Publish by : Tanya Pandey
Updated: April 9, 2025 03:28 pm
Rajasthan, India)
विटामिन D की कमी से क्या होता है असर?
यह कमी सिर्फ हड्डियों को ही नहीं, बल्कि पूरे शरीर को प्रभावित करती है। थकावट, मूड स्विंग्स, डिप्रेशन, इम्यून सिस्टम की कमजोरी, यहां तक कि डायबिटीज और कैंसर जैसी बीमारियों का भी जोखिम बढ़ सकता है। इस स्टडी के को-ऑथर आशीष चौधरी ने कहा कि विटामिन डी की कमी अब एक ‘साइलेंट एपिडेमिक’ बन चुकी है, जिस पर फौरन ध्यान देने की जरूरत है।
कम हो रहा है विटामिन D क्यों?
- घरों में रहना: आधुनिक जीवनशैली में लोग धूप से दूर होते जा रहे हैं, जिससे शरीर विटामिन D खुद नहीं बना पाता।
- पोषण की कमी: अंडा, मछली और डेयरी जैसे विटामिन D से भरपूर खाद्य पदार्थ हर किसी की पहुंच में नहीं हैं।
- मोटापा: मोटापा विटामिन डी के अवशोषण को प्रभावित करता है।
- नीतियों की कमी: अभी तक कोई प्रभावी राष्ट्रीय रणनीति नहीं है जो इस स्वास्थ्य संकट से निपट सके।
क्या करना होगा समाधान के लिए?
- विटामिन D2 को आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल करें।
- सस्ते या मुफ्त सप्लीमेंट्स उपलब्ध कराएं।
- धूप में समय बिताने और संतुलित आहार को लेकर जागरूकता फैलाएं।
- स्कूलों और दफ्तरों में ओपन-एयर एक्टिविटी को बढ़ावा दें।
- विटामिन D की जांच की कीमत कम करें।
- फूड फोर्टिफिकेशन पर ज़ोर दें जैसे आयोडीन युक्त नमक की नीति थी।
विशेषज्ञों की चेतावनी
ICRIER की प्रोफेसर डॉ. अर्पिता मुखर्जी ने कहा कि यह रिपोर्ट एक वेक-अप कॉल है। यदि अभी भी हमने ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाले सालों में यह समस्या महामारी का रूप ले सकती है। समय रहते पब्लिक हेल्थ पॉलिसी में बदलाव और बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान चलाना बेहद जरूरी है।
निष्कर्ष:
विटामिन डी की कमी को हल्के में लेने की भूल अब नहीं की जा सकती। यह न केवल हड्डियों, बल्कि हमारी मानसिक और शारीरिक सेहत को भी प्रभावित करता है। सस्ती जांच, पौष्टिक आहार, सप्लीमेंट्स की उपलब्धता और जागरूकता ही इस संकट से निपटने का रास्ता है।