दिव्य नव्य – कविता

दिव्य नव्य

पलकें बिछा कर स्वागत में राह निहारे सुबहों शाम।
ख़त्म हुई इंतज़ार की घड़ी हर्षित हुआ चारों धाम।
देखो जग मग ह्रद हुआ मंदिर बिराजे श्री राम अब।

विजय पताका फहर रहा सुरभित गलियाँ औ वन उपवन।
कठिन तपस्या पूर्ण हुई अब  आनंदित है तन औ मन।
देखो जग मग ह्रद हुआ मंदिर बिराजे श्री राम अब।

द्वारे -द्वारे अक्षत भेजा मिला है सबको निमंत्रण।
अयोध्या नगर के जागे भाग किया ऐसा परिवर्तन।
देखो जग मग ह्रद हुआ आ गए श्री राम अब।

जल थल अंबर हुलस रहे चहुँ दिश घुल रहा पीत चंदन।
आस्था में सभी भीग रहे जगत कर रहा हरि वंदन।
देखो जग मग ह्रद हुआ आ गए श्री राम अब।

चलो हो जाए राम मय और बन जाए हम राम सम।
राम का नाम ही सत्य हैं उनके गुणों को धारे हम।
देखो जग मग ह्रद हुआ आ गए श्री राम अब।

अब न कोई अहिल्या होगी और ना सिया हरे रावण।
सब की चिंता हरने वाले सीता राम हैं अति पावन।
देखो जग मग ह्रद हुआ आ गए श्री राम अब ।

दिव्य भव्य,नव्य मंदिर में दर्शन देंगे श्री राम जी।
बाल स्वरूप की आभा निरखे पंक्ति लगी है भक्तन की।
देखो जग मग ह्रद हुआ आ गए श्री राम अब ।

सविता गुप्ता-स्वरचित
राँची /झारखंड

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