
डॉ राजेंद्र यादव आजाद, दौसा, राजस्थान
समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन के द्वारा राणा सांगा पर दिए गए एक बयान से देश की राजनीति में भूचाल सा आ गया है । अभी औरंगजेब की कब्र का विवाद शांत भी नहीं हुआ था कि राणा सांगा को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया । करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन के घर तोड़फोड़ की । यह मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि जयपुर में लोक देवता वीर तेजाजी के मंदिर की मूर्ति खंडित करने के बाद एक नया विवाद फिर से उपज गया है । जयपुर में बढ़ते जन आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने तत्परता से कार्रवाई करते हुए सिद्धार्थ सिंह को गिरफ्तार किया गया। पुलिस पूछताछ में सिद्धार्थ सिंह ने बताया कि वह आर्थिक तंगी और नशे की हालत में यह कुकर्म कर बैठा लेकिन कहीं ना कहीं सिद्धार्थ सिंह के मन में लोक देवता तेजाजी या फिर जाट जाति को लेकर गलत धारणा बनी हुई थी जिसके कारण उसने इस घटना को अंजाम दिया । देश में आए दिन राजनेता देश का माहौल बिगड़ने के लिए अनाप-शनाप बयान बाजी कर रहे हैं अगर हम गडडे मुर्दों की खुदाई करेंगे तो न जाने इतिहास के कितने काले पन्ने हमारे सामने आ जाएंगे । देश के लिए बेहतर तो यही होगा कि इतिहास के पन्नों को उखाड़ने के बचाए हम देश के वर्तमान को ध्यान में रखते हुए भारत को विकसित करने में अपना अहम योगदान देवे। भारत जैसे विशाल देश में समय-समय पर अनेकों महापुरुष पीर पैगंबरों ने जन्म लेकर अपने आप को धन्य माना है मगर आज दिन प्रतिदिन बढ़ती जातिगत भावना ने यहां के महापुरुषों पीर पैगंबरों को एक जाति धर्म व संप्रदाय तक ही सीमित बनाकर रख दिया है । डॉ भीमराव अंबेडकर महात्मा गांधी ज्योतिबा फुले संत तुकाराम संत सुंदर दास राणा प्रताप राणा सांगा वीर शिवाजी भगवान राम कृष्ण भगवान परशुराम वाल्मीकि महात्मा बुद्ध भगवान महावीर लोक देवता रामसा पीर तेजाजी महाराज गोगा पीर और न जाने अन्य कितने महापुरुषों पीर पैगंबरों को एक जाति धर्म व संप्रदाय तक ही हमने समेट कर रख दिया है । महापुरुषों को जातीय बंधन में बांधने का विचार जिस तेजी से पनप रहा है वह आगे चलकर देश के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होने वाला है । कड़वा सच यह है कि प्रत्येक जाति धर्म संप्रदाय के लोग अपने कुल में जन्मे हुए महापुरुषों की जयंती मना कर अपने कर्तव्यों की इति श्री कर लेते हैं । लेकिन इन जयन्ती व के दौरान सर्व समाज की उपस्थिति शुन्य सी हो चली है।आज देश मे ऐसी स्थिति बन रही है की भगत सिंह करतार सिंह सराभा राव तुलाराम रानी झांसी मंगल पांडे नेताजी सुभाष अशफाक उल्ला खान रामप्रसाद बिस्मिल ये सब भी आने वाले समय मे जातिगत महापुरुष बनकर रह जाएंगे । इन वीर पुरुषों ने कभी अपनी जाति देखकर समाज का काम नहीं किया बल्कि संपूर्ण समाज ही उनके लिए समाज था । फिर हम आज समाज के मठाधीश कौन होते हैं उनको एक जाति के दायरे में बाधने वाले हम खोजते रहते हैं कि कौन महापुरुष किस जाति का है । नतीजा यह है की आज हमारे महापुरुष जातियों में बांट दिए गए हैं । कुछ युग पुरुषों को राजनीतिक पार्टियों ने हथिया लिया है डॉ राम मनोहर लोहिया जयप्रकाश नारायण पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर भाजपा का अधिकार हो गया है । कांग्रेस पार्टी तो एक परिवार तक ही सीमित होकर रह गई है उसे लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता दिखाई ही नहीं देते हैं । ऐसे में आम व्यक्ति अपने महापुरुषों की जयन्तियो को मनाना ही भूल गया है। आज आवश्यकता इस बात की है कि इन युग पुरुषों की जयंतियां एक जाति विशेष नही मना कर सभी जातियों के लोग मनाये तो भारत की अखंडता में एकता अवश्य दिखाई देगी। वरना यह कहना भी बेकार है कि भारत एक अखंड देश है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से भारत जैसे विशाल देश जिसकी ऐतिहासिक सांस्कृतिक और धार्मिक विरासतें इस देश की अखंडता का प्रमाण होती थी । देश का संविधान भी प्रत्येक नागरिकों को समानता का अधिकार देता आ रहा है मगर पिछले कुछ वर्षों से गंदी राजनीति ने इस देश की अखंडता को खंडित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । वैसे तो इस देश में वैमनस्यता के बीच भारत पाकिस्तान के विभाजन के समय अंग्रेजी हो बो गए थे । मगर 1947 में हिंदू मुस्लिम वैमनस्यता का जो बीज बोया गया वह आज इस देश के स्वार्थी राजनेताओं के कारण एक वट वृक्ष बनाकर पनप रहा है । आज देश गृह युद्ध और जातिय कडुता की तरफ बढ़ रहा है । जहां हिंदू मुस्लिम सिख और ईसाई मिलजुल कर रहते थे वहां आज हम जातीयो में बट चुके हैं। असम मणिपुर के दंगे ले लो या फिर राज ठाकरे का मराठी मानस ये सब देश विभाजन के कारक हैं। राज ठाकरे मुंबई में उत्तर भारतीयों को खदेड़ता है तो असम और पूर्वोत्तर राज वासियों को । मणिपुर में कुकी और नागा समुदायों के मध्य दंगे हुए थे यह दंगेजातिय और सांस्कृतिक मतभेदों के कारण हुए थे जिसमें कई लोग मारे गए थे और बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ था । आपस में ही आज देश की जातियां एक दूसरे के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार खड़ी है। आखिर क्यों? क्या मुंबई या असम या मणिपुर भारत से बाहर है? जब कहीं हम यह लिखा देखते कि हम भारतीय भाई बहन हैं तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन आज स्थिति यह हो गई की है कि हम भारतीय नहीं होकर पहले किसी जाति विशेष के सदस्य हैं फिर किसी राज्य के इसके बाद हम भारतीय हैं। हमारी पहचान भारतीय नहीं होकर जाति हो गई है। बढ़ता जातिय दम्भ भारतीय लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है। वर्षों की सामाजिक समरसता को तार-तार कर दिया गया है। समाज के तथाकथित नेताओं द्वारा एक दूसरे समुदाय के विरुद्ध आज भी भड़काऊ बयान समय पर आते रहते हैं।। छात्र संघ चुनाव के दौरान भी जातीय कटुता देश मे नजर आती है। अच्छा कार्य करने वाले अधिकारी को उसकी जाति के कारण विरोध का सामना करना पड़ता है तो दूसरी तरफ प्रशासन द्वारा असामाजिक तत्वों पर कार्यवाही की जाती है तो उसके लिए किसी भी समाज को अपने खिलाफ नहीं मानना चाहिए। समाज कंटक लोगों की कोई जाति नहीं होती है। देश में दिन प्रतिदिन बढ़ रही जातिगत वैमनस्यता लोकतंत्र को कमजोर कर रही है। कर्मचारी वर्ग भी कार्यालय में जातिगत संगठनों में बटे हुए हैं । आरक्षित व अनारक्षित वर्ग के कार्मिक अपने हितों के लिए अलग-अलग संगठन बनाकर कार्यालय में बैठे हैं जिससे आम जनता को नुकसान ही हो रहा है। कार्यालय में एक छोटे से कार्य के लिए देश की भोली भाली जनता इनकी आपसी गुटबाजी के कारण पीस रही है । ऐसी स्थिति में आज युवा शक्ति को सकारात्मक सोच रखते हुए देश के विकास में भागीदार बनना चाहिए । यदि युवा कुछ समाज हित में करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम अपने समाज में फैली दहेज प्रथा कन्या भ्रूण हत्या शराब खोरी रिशवत व अन्य बुराइयों को समाप्त करें । समाज के वरिष्ठ नागरिक युवा वर्ग को उच्च दिशा प्रदान करे । वरिष्ठ नागरिकों का दायित्व है कि वह युवाओं को गलत रास्ते पर जाने से रोके । अगर किसी को समाज का मसीहा बनना है तो नीलकंठ बने न की भस्मासुर। जिस तरह से दीमक लकड़ी को अंदर ही अंदर खोखला कर देती है वैसे ही आज देश में बढ़ रही जातिवा की राजनीति राष्ट्र को कमजोर कर रही है । सामाजिक समरसता को बनाए रखने के लिए समाज हित में कार्य करने का संकल्प लेना चाहिए और सभी महापुरुषों को उचित स्थान देते हुए इतिहास के गड्ढे हुए मुर्दे उखाड़ना बंद कर देना चाहिए । ताकि हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सभी आपस में मिलकर प्यार और प्रेम से रहे। देख इसमें भारत सरकार को चाहिए कि जितने भी करणी सेना यादव सेना गुर्जर सेना परशुराम सेना व अन्य जातिगत सेनाओ पर देश हित में तत्काल प्रभाव से रोक लगाकर इतिहास की खबर खोदना बंद कर देना चाहिए ताकि देश में अमन और चैन बना रहे ।
– डॉ राजेंद्र यादव आजाद, दौसा, राजस्थान