ऑस्ट्रेलिया की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज हर साल भारत समेत दुनियाभर के हजारों छात्रों को आकर्षित करती हैं। लेकिन आने वाले समय में यहां पढ़ाई करना आसान नहीं रहेगा, खासकर अगर विपक्ष सत्ता में आता है। लिबरल पार्टी और नेशनल पार्टी के गठबंधन ने एक ऐसा प्रस्ताव पेश किया है जो विदेशी छात्रों की संख्या, फीस और प्रवेश से जुड़े नियमों को कड़ा कर सकता है।

(Publish by : Tanya Pandey
Updated: April 8, 2025 07:59 am
Rajasthan, India)
विदेशी छात्रों की संख्या पर लगेगी सीमा
विपक्ष की योजना के अनुसार, हर साल ऑस्ट्रेलिया में आने वाले नए अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या को 2,40,000 तक सीमित कर दिया जाएगा। यह संख्या सत्तारूढ़ लेबर पार्टी की मौजूदा नीति से 30,000 कम है। इस कदम का उद्देश्य माइग्रेशन पर नियंत्रण रखना और बढ़ते हाउसिंग संकट को कम करना है।
सरकारी यूनिवर्सिटीज में एडमिशन की लिमिट
प्रस्ताव के मुताबिक, सरकारी यूनिवर्सिटीज में 1,15,000 से अधिक विदेशी छात्रों को दाखिला नहीं दिया जाएगा, जबकि प्राइवेट और अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में यह संख्या 1,25,000 तक सीमित रहेगी। साथ ही यह भी तय किया गया है कि सरकारी यूनिवर्सिटीज में विदेशी छात्रों की हिस्सेदारी कुल छात्रों का 25% से अधिक नहीं होनी चाहिए। यह नियम अगले वर्ष से लागू हो सकता है, लेकिन प्राइवेट यूनिवर्सिटीज और वोकेशनल संस्थानों पर यह लागू नहीं होगा।
वीज़ा और आवेदन शुल्क में बढ़ोतरी की योजना
विपक्ष ने वीज़ा और एप्लीकेशन फीस में भी भारी बढ़ोतरी का प्रस्ताव दिया है। ‘ग्रुप ऑफ एट’ यूनिवर्सिटीज जैसे सिडनी यूनिवर्सिटी, मेलबर्न यूनिवर्सिटी और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में आवेदन करने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों को $5,000 एप्लीकेशन फीस देनी होगी। अन्य संस्थानों में यह शुल्क $2,500 होगा। वहीं अगर कोई छात्र अपनी यूनिवर्सिटी या कॉलेज बदलना चाहता है, तो उसे भी $2,500 अतिरिक्त चुकाने होंगे।
विपक्षी नेता पीटर डटन ने दी सफाई
मेलबर्न के एक हाउसिंग डेवलपमेंट इवेंट में बोलते हुए विपक्ष के नेता पीटर डटन ने कहा कि इस योजना का उद्देश्य ऑस्ट्रेलियाई युवाओं के लिए घरों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है। उनका कहना है, “हमारी प्राथमिकता ऑस्ट्रेलिया के लोगों को घर मुहैया कराना है। इसके लिए हमें माइग्रेशन पर लगाम लगानी होगी।”
यूनिवर्सिटीज ने जताई नाराज़गी
इस प्रस्ताव पर उच्च शिक्षा क्षेत्र से आलोचना भी शुरू हो गई है। यूनिवर्सिटी प्रबंधन का कहना है कि इससे न सिर्फ उनकी आमदनी पर असर पड़ेगा बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय छात्रों से मिलने वाली फीस और खर्च से ऑस्ट्रेलिया की शिक्षा और सेवाक्षेत्र को बड़ा समर्थन मिलता है।