तेलंगाना की उच्च शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव होने वाला है। मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने राज्य की यूनिवर्सिटियों में पढ़ाए जा रहे ऐसे कोर्सेज को बंद करने का प्रस्ताव रखा है जो अब समय के अनुसार प्रासंगिक नहीं रह गए हैं। साथ ही, इन कोर्सों से जुड़े शिक्षकों को प्रशासनिक जिम्मेदारियां सौंपे जाने की संभावना है।

(Publish by : Tanya Pandey
Updated: April 9, 2025 03:31 pm
Rajasthan, India)
पुराने पाठ्यक्रमों पर लगेगा विराम?
सीएम रेड्डी का मानना है कि कई ऐसे कोर्स हैं जिनसे न तो छात्रों को करियर में मदद मिल रही है और न ही उनमें कोई नई रुचि दिखाई देती है। छात्रों की उपस्थिति लगातार घट रही है और वे इन कोर्सों को अप्रासंगिक और उबाऊ मानते हैं। ऐसे में इन विषयों को जारी रखना शिक्षा और संसाधनों की बर्बादी है।
सबसे अधिक असर किन विभागों पर?
उस्मानिया यूनिवर्सिटी सहित कई संस्थानों में सोशल साइंसेज और ह्यूमैनिटीज जैसे विषयों पर सबसे पहले असर देखने को मिल सकता है। इनमें विशेष तौर पर फिलॉसफी विभाग चर्चा में है, जिसे ‘बंद किए जाने की सूची’ में सबसे ऊपर माना जा रहा है। एक पूर्व कुलपति ने बताया कि कभी प्रतिष्ठित माने जाने वाले विषय अब छात्रों को आधुनिक स्किल्स और जॉब के लिहाज़ से मदद नहीं कर पा रहे हैं।
भारतीय विचारधाराएं नदारद
इन कोर्सों में विदेशी दार्शनिक अवधारणाओं को प्रमुखता दी जा रही है, जबकि भारतीय दर्शन और मूल साहित्य को नजरअंदाज किया जा रहा है। अधिकांश अध्ययन सामग्री अंग्रेजी में होने से छात्रों की मौलिक सोच और रचनात्मकता भी प्रभावित होती है।
क्या पूरे विभाग हो जाएंगे बंद?
यदि कुछ शिक्षकों को एडमिनिस्ट्रेशन में ट्रांसफर कर दिया गया, तो स्टाफ की कमी के कारण पूरे विभाग के अस्तित्व पर खतरा मंडरा सकता है। इससे न सिर्फ शिक्षकों बल्कि छात्रों में भी असमंजस की स्थिति बन गई है।
दूसरे संस्थानों से तुलना
जहां सेंट्रल यूनिवर्सिटी और IIT जैसे संस्थान फिलॉसफी और सामाजिक विषयों को समकालीन मुद्दों से जोड़ते हुए पढ़ा रहे हैं, वहीं राज्य की पारंपरिक यूनिवर्सिटियां अब भी पुराने तरीकों पर टिकी हैं।
आगे की राह
राज्य सरकार की यह पहल उच्च शिक्षा में बदलाव की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकती है, लेकिन यह भी जरूरी है कि सुधार ऐसे हों जो शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित न करें। छात्रों के लिए रोजगार और स्किल आधारित कोर्सों की पेशकश के साथ-साथ भारत की पारंपरिक ज्ञान परंपरा को भी शामिल करना जरूरी होगा।