कबीर का चच्चा – कहानियां

शिल्पा वर्मा
जयपुर, राजस्थान

हमारे गांव में एक बुजुर्ग व्यक्ति रहते हैं जिनकी आयु लगभग पचहत्तर वर्ष है। नाम तो पता नहीं लेकिन सब उन्हें चच्चा कहते हैं। चच्चा की कई आदतों में से एक आदत ऐसी है जिसके कारण कई बार लोग उनसे बहुत चिढ़ जाते हैं। अपने आस- पास के लोगों के हर काम/बात पर अपनी राय देने लगते हैं, टिप्पणी करने लगते हैं। उनकी बात मानने लायक हो तो मानी भी जाती है लेकिन ऐसा कम ही होता है। अधिकतर लोग चिढ़ कर रह जाते हैं, चच्चा की वयोवृद्धता का मान रखने की कोशिश करते हैं। चच्चा कुछ गुस्सैल भी है। राय नहीं मानी जाए तो कई बार अपनी टिप्पणियां गालियों की थालियों में परोस के सामने वाले के हाथों में जबरन थमा देते हैं, फिर चाहे वो खाए या फेंके लेकिन चच्चा को वापस नहीं दे सकता। चच्चा अपने समय के बीए पास हैं। साहित्य में उनकी कुछ रुचि है, जितना समझ आए उतने से काम चला लेते हैं। कबीर जी के सैकड़ों दोहे मुखजबानी याद हैं। गाली की थाली तो उनका दूसरा और अंतिम हथियार है, पहला तो कबीर जी के दोहे हैं जिन्हें वे अपना ही समझते हैं। चाहे परिस्थिति पर सही बैठे या न बैठे वे बस दोहा चिपका डालते हैं। उस पर मजे की बात ये है कि लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि कबीर जी के दोहा भण्डार में से चच्चा एक- एक कर दोहा चुराते हैं, थोड़ा फेर- बदल करके अपने नाम से सुनाते रहते हैं। लेकिन लोग कुछ नहीं कहते। वाह! वाह!, क्या बात यह है चच्चा!, तुम तो सर्वज्ञानी हो, चच्चा! कहकर बात हँसी में टाल देते हैं।

एक बार हुआ ये कि स्वयं को महात्मा बताने वाले एक व्यक्ति हमारे गांव में पधारे। उनकी खूब आवभगत हुई। अब आए हैं तो गांव के सर्वज्ञानी चच्चा से भी मिल लेते हैं ये सोचकर वे चच्चा के द्वार पहुंच गए। वहां बाहर चबूतरे पर एक खटिया डाली हुई थी, जिसपर चच्चा अपने हुक्के सहित विराजमान थे। दोनों ने एक- दूसरे को प्रणाम किया, हुक्के और चच्चा ने नहीं, महात्मा और चच्चा ने। बातें धर्म- अध्यात्म, राजनीति, समाज के गलियारों से निकलकर साहित्य के नुक्कड़ पर पहुंच गई। चच्चा ने आदतन अपनी बात का वज़न बढ़ाने के लिए कबीर जी का दोहा अपना बताकर चिपका दिया। महात्मा जी ने घाट- घाट का पानी पीया था, कुछ पढ़े- लिखे भी थे, इस गांव के भी नहीं थे जो चच्चा की उम्र का लिहाज़ कर दोहे पर वाहवाही कर देते। इसलिए छूटते ही कह दिया – “अरे, चच्चा! बहुत ज्ञानी बनते फिरते हो, तुम तो निरे चोर हो, कबीर का दोहा पढ़कर खुद को कबीर समझने लगे। मूर्ख….” अब क्या था! चच्चा आग बबूला हो गए। इतने वर्षों में किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उन्हें चोर और मूर्ख एक साथ कह सके। चच्चा बोले – “ढोंगी कहीं के! खुद को महात्मा कहते हो। बुजुर्गों से बात करने की तमीज़ तक नहीं है तुम्हें। तुम न तो महान हो, न तुम में आत्मा। फिर काहे का महात्मा….” दोनों ओर से बहस की गर्मी बढ़ने लगी। इसमें झुलसते हुए चच्चा को याद आया कि इसने अभी दोहे का बारे में कुछ कहा था….. हां! कह रहा था कि खुद को कबीर समझने लगे हो।
अब चच्चा बहस के दूसरे छोर को पकड़कर इधर घुमा लाए। हुक्के की गुड़गुड़ के साथ बोलने की कोशिश की, नहीं बोला गया तो हुक्का हटाकर बोले – ” ढोंगी, मैं कबीर नहीं हूं, पूर्वजन्म का उसका चच्चा हूं! बोल, तू क्या कर लेगा।” महात्मा समझ गए कि उम्र के इस पड़ाव पर चच्चा से ज्यादा बहस करना ठीक नहीं , कहीं बोलते – खांसते मर गया तो गांव वालों से बचना मुश्किल हो जाएगा, बुड्ढा तो निकल लेगा; मुझे लेने के देने पड़ जाएंगे। इसलिए महात्मा जी अपना सा मुंह लिए हाथ जोड़कर चल दिए।
आसपास खड़े लोगों के लिए ऐसी बातें कुछ ख़ास महत्व की नहीं थी, इसलिए हँसते हुए अपने- अपने घर चल दिए। लेकिन चच्चा के मन में बात घर कर गई। इन्हें देश- देहात की ख़बर जानने का बहुत शौक है, दिखाई ठीक से नहीं देता इसलिए रोज़ पड़ोसी के टीवी पर न्यूज देखने की जगह सुनने जाते हैं। कल भी गए थे। जाने क्या देख के आए कि आज अपना सामान बांध शहर में एक नामी बाबा के दरबार में जाने की तैयारी कर रहे हैं। पेंशन के कुछ सौ रूपए मिलते हैं जो किराए के लिए पर्याप्त हैं। पड़ोस के एक युवक ने पूछा- “ओ, चच्चा! कहां जाने की तैयारी कर रहे हो?”
चच्चा बोले – उस दिन वो ढोंगी आया था ना! मुझसे बहस करके गया था। उसका मुंह बंद करने का बंदोबस्त करने जा रहा हूं।” युवक डर गया कि बुजुर्ग आदमी कहीं किसी झमेले में न पड़ जाए। इसलिए सारी बात बताने को विनती की। तो चच्चा बोले – “बेटा, कल मैंने टीवी में एक बाबा के मुंह से सुना कि हमारे देश के कई राजनेता पूर्वजन्म में भगवान राम, श्याम, हनुमान जी थे। उस बाबा पर जनता बहुत विश्वास करती है, इसलिए उन राजनेताओं को सच में भगवान समझने लगी है। अब मैं भी उस बाबा के दरबार में जा रहा हूं। विनती करूंगा कि एक बार मुझे टीवी पर कबीर के चच्चा का अवतार बता दे तो मुझसे जलने वालों का मुंह बंद हो जाए।”
युवक ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा – “तुम्हें पता नहीं है चच्चा! वो बाबा आज ही उस पार्टी की टिकट ले बैठा है जिसके प्रमुख वे राजनेता भी हैं। ये राजनीति की बातें हैं चच्चा। दूसरी बात ये भी है कि वो तुम्हें कबीर का चच्चा क्यों बताएगा? उसको क्या लाभ?”
चच्चा कुछ सोचकर कहने लगे – ” तो बेटा मैं आज नहीं जाऊंगा। मैंने पिछले कुछ महीनों से पेंशन जोड़ना शुरू कर दिया था। अब इस महीने की और आ जाने दो। इतने पैसे देखकर बाबा तो क्या बाबा का बाबा भी कह देगा – तुम पिछले जन्म में क्या, इस जन्म में भी कबीर के चच्चा हो, चच्चा!”

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