13 अप्रैल 2025 को राजधानी दिल्ली में जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में मुसलमानों से जुड़े कई संवेदनशील विषयों पर गंभीर विचार-विमर्श हुआ और महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए गए। जिन मुख्य मुद्दों पर चर्चा हुई, वे हैं — वक्फ अधिनियम 2025, समान नागरिक संहिता (यूसीसी), बुलडोजर कार्रवाई और फिलिस्तीन में इजरायली हमले।

(Publish by : Tanya Pandey
Updated: April 14, 2025 09:20 am
Rajasthan, India)
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर चिंता
सभा ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को संविधान विरोधी बताया और कहा कि यह कानून न सिर्फ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29 और 300-ए का उल्लंघन करता है, बल्कि वक्फ की मूल इस्लामी व्यवस्था पर भी चोट करता है।
‘वक्फ बाय यूज़र’ की व्यवस्था को समाप्त करने से उन धार्मिक स्थलों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है जो वर्षों से वक्फ के रूप में उपयोग में रहे हैं। सरकार की रिपोर्टों के अनुसार ऐसी संपत्तियाँ 4 लाख से भी अधिक हैं।
साथ ही, वक्फ परिषदों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने को इस्लामी धार्मिक मामलों में सीधा हस्तक्षेप बताया गया। यह स्पष्ट रूप से अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है।
सभा ने संतोष व्यक्त किया कि जमीअत के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और अदालत में मजबूती से पैरवी करने के लिए वरिष्ठ वकीलों की मदद लेने का आह्वान किया गया है।
समान नागरिक संहिता पर गंभीर आपत्ति
सभा ने उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन और मुस्लिम पर्सनल लॉ को समाप्त करने के प्रयास को धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताया।
जमीअत का कहना है कि शरीयत इस्लामी जीवन पद्धति का मूल आधार है, जिसमें किसी भी प्रकार का बदलाव न तो स्वीकार्य है और न ही संभव है। कुरान और हदीस से प्राप्त आदेशों में फेरबदल नहीं किया जा सकता।
समान नागरिक संहिता केवल मुसलमानों की ही नहीं, बल्कि पूरे देश की विविधता और बहुलता के लिए खतरा है। इसका सीधा प्रभाव भारत की एकता और अखंडता पर पड़ेगा।
सभा ने मुसलमानों से अपील की कि वे शरीयत के सभी आदेशों को जीवन में पूरी मजबूती से लागू करें, ताकि शरीयत में हस्तक्षेप का कोई अवसर ही न बचे।
बुलडोजर कार्रवाई पर कड़ी निंदा
सभा ने बिना नोटिस, बिना कानूनी प्रक्रिया के घरों और दुकानों को गिराने की घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की।
यह कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि किसी भी विध्वंस से पहले नोटिस देना और पक्षकार को सुनवाई का अवसर देना आवश्यक है। लेकिन हाल के दिनों में खासकर गरीबों और मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोगों के घर निशाना बनाए जा रहे हैं, जो अत्यंत निंदनीय है।
सभा ने इसे संविधान की मूल भावना — न्याय, समानता और कानून के शासन — का उल्लंघन बताया। साथ ही मांग की कि न्यायपालिका इस पर संज्ञान ले और जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाए।
फिलिस्तीन में इजरायल की बर्बरता पर प्रस्ताव
सभा ने गाज़ा में इजरायल द्वारा किए जा रहे हमलों को मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया। हजारों बच्चों, महिलाओं और निर्दोष नागरिकों की हत्या पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई।
यह भी कहा गया कि इजरायल ने न सिर्फ नागरिकों को निशाना बनाया है, बल्कि अस्पतालों, मस्जिदों, स्कूलों, पत्रकारों और बुनियादी ढांचे को भी जानबूझकर तबाह किया है।
जमीअत ने भारत सरकार से आग्रह किया कि वह युद्धविराम के लिए पहल करे, घायलों के इलाज की व्यवस्था करे और फिलिस्तीनियों को मानवीय सहायता उपलब्ध कराए।
साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की गई कि वे एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना के लिए प्रभावी कदम उठाएं और अल-अक्सा मस्जिद पर किसी भी प्रकार का इजरायली नियंत्रण अस्वीकार्य बताया।